Yakeen

Friday, October 10, 2025







माना की सब कुछ मिल नहीं सकता बस यूँ ही 
पर उस किस्म की तो चाहत थी भी नहीं 

हो सकता है की मिलने का एक कारण होता तो है 
और उसका एक अंत भी निश्चित हमेशा रहता है 

रह जाती है बस एक लम्बी सी कहानी बाकी 
मैं हूँ क्या ? विरह  में  तो थे शिव और शक्ति भी 

कुछ पूरा हो जाने की प्यास में जा रही हूँ उस  पार 
पा लुंगी संघ, हो जाउंगी साथ अभी नहीं तो किसी और बार 

मिलने की ज़िद्द भी वही और खोने का गम भी है सही 
खामोश सा यकीन है बस की तू मुझ में है और मैं तुझमें कहीं 



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