पर उस किस्म की तो चाहत थी भी नहीं
हो सकता है की मिलने का एक कारण होता तो है
और उसका एक अंत भी निश्चित हमेशा रहता है
रह जाती है बस एक लम्बी सी कहानी बाकी
मैं हूँ क्या ? विरह में तो थे शिव और शक्ति भी
कुछ पूरा हो जाने की प्यास में जा रही हूँ उस पार
पा लुंगी संघ, हो जाउंगी साथ अभी नहीं तो किसी और बार
मिलने की ज़िद्द भी वही और खोने का गम भी है सही
खामोश सा यकीन है बस की तू मुझ में है और मैं तुझमें कहीं
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