जाने तू या जाने ना

Tuesday, October 7, 2025




ढूंढ़ती हु हर तरफ हर कहीं हर किसी में तुझे 

पर फिर भी जाने से तेरी गली में खौफ लगता है मुझे 


कर लिया समझौता हर तरीके हर इंसान हर ख़ामोशी से 

पर फिर भी जाने ना  ये दिल क्यूँ अटका सा ही लगे 


बातों से लगता था मिल गया है कोई बचपन का साथी मुझे 

पर फिर भी जाने अनजाने न समझ पाई रत्ती भर भी तुझे 


हर दुआ, हर साधना हर कोशिश में  काट रही हूँ फेरे 

पर फिर भी जाने माने तरीके कोई काम के नहीं मेरे 


जब अब भी हर साँस में, हर सोच में नाम आता है तेरा 

पर फिर भी लगता है जाने बूझे की बस ये दर्द ही है मेरा