Un-attached

Wednesday, October 29, 2025



Love in the most awaken form

Most intimate kind of presence 

Practice of keeping one hand on your heart

Other one reaching out to touch another's

Feeling the ache of the shadow rise

Whispering "Choose Me.. See Me .. Don't forget Me."

Meeting it with tenderness 

Instead of fear , shame and rejection

Learning to be rooted in myself

While the tides of pain rise and fall 

Yakeen

Friday, October 10, 2025







माना की सब कुछ मिल नहीं सकता बस यूँ ही 
पर उस किस्म की तो चाहत थी भी नहीं 

हो सकता है की मिलने का एक कारण होता तो है 
और उसका एक अंत भी निश्चित हमेशा रहता है 

रह जाती है बस एक लम्बी सी कहानी बाकी 
मैं हूँ क्या ? विरह  में  तो थे शिव और शक्ति भी 

कुछ पूरा हो जाने की प्यास में जा रही हूँ उस  पार 
पा लुंगी संघ, हो जाउंगी साथ अभी नहीं तो किसी और बार 

मिलने की ज़िद्द भी वही और खोने का गम भी है सही 
खामोश सा यकीन है बस की तू मुझ में है और मैं तुझमें कहीं 



जाने तू या जाने ना

Tuesday, October 7, 2025




ढूंढ़ती हु हर तरफ हर कहीं हर किसी में तुझे 

पर फिर भी जाने से तेरी गली में खौफ लगता है मुझे 


कर लिया समझौता हर तरीके हर इंसान हर ख़ामोशी से 

पर फिर भी जाने ना  ये दिल क्यूँ अटका सा ही लगे 


बातों से लगता था मिल गया था कोई बचपन का साथी मुझे 

पर फिर भी जाने अनजाने न समझ पाई रत्ती भर भी तुझे 


हर दुआ, हर साधना हर कोशिश में  काट रही हूँ फेरे 

पर फिर भी जाने माने तरीके कोई काम के नहीं मेरे 


जब अब भी हर साँस में, हर सोच में नाम आता है तेरा 

पर फिर भी लगता है जाने बूझे की बस ये दर्द ही है मेरा