ढूंढ़ती हु हर तरफ हर कहीं हर किसी में तुझे
पर फिर भी जाने से तेरी गली में खौफ लगता है मुझे
कर लिया समझौता हर तरीके हर इंसान हर ख़ामोशी से
पर फिर भी जाने ना ये दिल क्यूँ अटका सा ही लगे
बातों से लगता था मिल गया है कोई बचपन का साथी मुझे
पर फिर भी जाने अनजाने न समझ पाई रत्ती भर भी तुझे
हर दुआ, हर साधना हर कोशिश में काट रही हूँ फेरे
पर फिर भी जाने माने तरीके कोई काम के नहीं मेरे
जब अब भी हर साँस में, हर सोच में नाम आता है तेरा
पर फिर भी लगता है जाने बूझे की बस ये दर्द ही है मेरा