कितना सकून था उन मुलाकातों में
जहा लब्जो से जयादा आँखें बोलती थी।
हम थे और वक्त था। हर चीज जैसे हमारे लिए ही थी !
ना साथ का छूटना ना दूर होने का डर।
ना वक्त का तकाज़ा ना किसी बात की चिंता !
दुनिया सारी एक तरफ। वो मुलाकात एक तरफ।
जरा जरा सी बात पर। घंटो बातें करना।
और जब चुप होना। तो इतना परेशां होना !
खुश होने का मतलब समझना आसान था .. ।
और जब मुलाकात खत्म होती।
अगली के इंतज़ार मैं और पिछली की याद में !
यादें बनती गई !
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