Sookhi Ghaas

Thursday, November 7, 2024

 




उस साल मेरे आंगन की घास भी रोई होगी

ना जाने वो ऐसा क्या क्या खोई होगी 

जब थी नहीं मैं हो के भी उसके पास

हाथ से छूट गई होगी फिर हरे होने की आस

वो कहते हैं सब झूठ, कि वक्त बदलता जरूर है

समझना है मुश्किल, इसमें किसका क्या कसूर है 

बगिया देख के बस इतना ही चाहूंगी हर बार

धरती क्या चाहे , उसका बारिश सा प्यार