उस साल मेरे आंगन की घास भी रोई होगी
ना जाने वो ऐसा क्या क्या खोई होगी
जब थी नहीं मैं हो के भी उसके पास
हाथ से छूट गई होगी फिर हरे होने की आस
वो कहते हैं सब झूठ, कि वक्त बदलता जरूर है
समझना है मुश्किल, इसमें किसका क्या कसूर है
बगिया देख के बस इतना ही चाहूंगी हर बार
धरती क्या चाहे , उसका बारिश सा प्यार